400 साल तक बर्फ के नीचे दबा था केदारनाथ मंदिर
400 साल तक बर्फ के नीचे दबा था केदारनाथ मंदिर..... !!
केदारनाथ मंदिर की एक और ऐसी हकीकत जिससे कम लोग ही वाकिफ होंगे। वैज्ञानिकों के मुताबिक केदारनाथ
मंदिर 400साल तक बर्फ के नीचे दबा था, लेकिन फिर भी उसे कुछ नहीं हुआ।
इसीलिए जियोलॉजिस्ट और वैज्ञानिक इस बात से हैरान नहीं हैं कि ताजा जलप्रलय
में केदारनाथ मंदिर बच गया। 400 सालतक बर्फ के नीचे दबा था केदारनाथ
मंदिर, चार सौ साल तक ग्लेशियर से ढंका था केदारनाथ मंदिर। चार सौ साल तक
ग्लेशियर के भयानक बोझ को सह चुका है केदारनाथ मंदिर।
जी
हां, ये कहना है देहरादून के वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के
वैज्ञानिकों का। शायद यही वजह है कि केदारनाथ मंदिर को जल प्रलय के थपेड़ों
से कोई नुकसान नहीं हुआ।
केदारनाथ मंदिर के पत्थरों पर पीली
रेखाएं हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक ये निशान दरअसल ग्लेशियर के रगड़ से
बने हैं। ग्लेशियर हर वक्त खिसकते रहते हैं और जब वो खिसकते हैं तो उनके
साथ न सिर्फ बर्फ का वजन होता है बल्कि साथ में वो जितनी चीजें लिए चलते
हैं वो भी रगड़ खाती हुई चलती हैं। अब सोचिए जब करीब 400 साल तक मंदिर
ग्लेशियर से दबा रहा होगा तो इस दौरान ग्लेशियर की कितनी रगड़ इन पत्थरों
ने झेली होगी ??
वैज्ञानिकों के मुताबिक मंदिर के अंदर की
दीवारों पर भी इसकेसाफ निशान हैं। बाहर की ओर पत्थरों पर ये रगड़ दिखती है
तो अंदर की तरफ पत्थर ज्यादा समतल हैं जैसे उन्हें पॉलिश किया गया हो।
दरअसल 1300 से लेकर 1900 ईसवीं के दौर को लिटिल आईस एज यानि छोटा हिमयुग
कहा जाता है। इसकी वजह है इस दौरान धरती के एक बड़े हिस्से का एक बार फिर
बर्फ से ढंक जाना। माना जाता है कि इसी दौरान केदारनाथ मंदिर और ये पूरा
इलाका बर्फ से दब गया और केदारनाथ धाम का ये इलाका भी ग्लेशियर बन गया।
केदारनाथ मंदिर की उम्र को लेकर कोई दस्तावेजी सबूत नहीं मिलते। इस बेहद
मजबूत मंदिर को बनाया कईओं ने इसे लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। कुछ कहते
हैं कि 1076 से लेकर 1099 विक्रमसंवत तक राजकरने वाले मालवा के राजा भोज ने
ये मंदिर बनवाया था। तो कुछ कहते हैं कि आठवीं शताब्दीमें ये मंदिर
आदिशंकराचार्य ने बनवाया था।
बताया जाता है कि द्वापर युग
में पांडवों ने मौजूदा केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे एक मंदिर बनवाया था।
लेकिन वो वक्त के थपेड़े सह न सका। वैसे गढ़वाल विकास निगम के मुताबिक
मंदिर आठवीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने बनवाया था। यानि छोटे हिमयुग का
दौर जो कि 1300 ईसवी से शुरू हुआ उससे पहले ही मंदिर बनचुका था।
वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने केदारनाथ इलाके की लाइकोनोमेट्रिक
डेटिंग भी की, लाइकोनोमेट्रिक डेटिंग एक तकनीक है जिसके जरिए पत्थरों और
ग्लेशियर के जरिए उस जगह की उम्र का अंदाजा लगता है। ये दरअसल उस जगह के
शैवाल और कवक को मिलाकर उनके जरिए समय का अनुमान लगाने की तकनीक है।
लाइकोनोमेट्रिक डेटिंग के मुताबिक छोटे हिमयुग के दौरान केदारनाथ धाम इलाके
में ग्लेशियर का निर्माण 14वीं सदी के मध्य में शुरू हुआ। और इस घाटी में
ग्लेशियर का बनना 1748 ईसवीं तक जारी रहा।
अगर 400 साल
तक ये मंदिर ग्लेशियर के बोझ को सह चुका है और सैलाब के थपेड़ों को झेलकर
बच चुका है तो जाहिर है इसे बनाने की तकनीक भी बेहद खास रही होगी। जाहिर है
शायद इसे बनाते वक्त इन बातों का ध्यान रखा गया होगा कि ये कहाँ है क्या
ये बर्फ, ग्लेशियर और सैलाब के थपेड़ों को सह सकता है।
दरअसल केदारनाथ का ये पूरा इलाका चोराबरी ग्लेशियर का हिस्सा है। ये पूरा
इलाका केदारनाथ धाम और मंदिर तीन तरफ से पहाड़ों से घिरा है। एक तरफ है
करीब 22 हजार फीट ऊंचा केदारनाथ। दूसरी तरफ है 21,600 फीट ऊंचा खर्चकुंड।
तीसरी तरफ है 22,700 फीट ऊंचा भरतकुंड। न सिर्फ तीन पहाड़ बल्कि पांच
नदियों का संगम भी है यहां मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और
स्वर्णद्वरी।
वैसे इसमें से कई नदियों को काल्पनिक माना
जाता है। लेकिन यहां इस इलाके में मंदाकिनी का राज है यानि सर्दियों में
भारी बर्फ और बारिश में जबरदस्त पानी। जब इस मंदिर की नींव रखी गई होगी तब
भी शिव भाव का ध्यान रखा गया होगा। शिव जहां रक्षक हैं वहीं शिव विनाशक भी
हैं।
इसीलिए शिव की आराधना के इस स्थल को खास तौर पर बनाया
गया। ताकि वो रक्षा भी कर सके और विनाश भी झेल सके। 85 फीट ऊंचा, 187 फीट
लंबा और 80 फीट चौड़ा है केदारनाथ मंदिर। इसकी दीवारें 12 फीट मोटी हैं और
बेहद मजबूत पत्थरों से बनाई गई हैं। मंदिर को 6 फीट ऊंचे चबूतरे पर खड़ा
किया गया है।
ये हैरतअंगेज है कि इतने साल पहले इतने
भारी पत्थरों को इतनी ऊंचाई पर लाकर, यूं तराश कर कैसे मंदिर की शक्ल दी गई
होगी। जानकारों का मानना है कि केदारनाथ मंदिर को बनाने में, बड़े पत्थरों
को एक दूसरे में फिट करने में इंटरलॉकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया
होगा। ये तकनीक ही नदी के बीचों- बीच खड़े मंदिरों को भी सदियों तक अपनी
जगह पर रखने में कामयाब रही है।
लेकिन ताजा जल प्रलय के
बाद अब वैज्ञानिकों को इस बात का खतरा सता रहा है कि लगातार पिघलते
ग्लेशियर की वजह से। ऊपर पहाड़ों में मौजूद सरोवर लगातार बढ़ते जा रहे हैं
और जैसा कि केदारनाथ में हुआ। गांधी सरोवर ज्यादा पानी से फट कर नीचे सैलाब
की शक्ल में आया। वैसा आगे भी हो सकता है और अगर मंदिर पहाड़ों से गिरे इस
चट्टानों के लीधे ज़द में आ गया तो उसे बड़ा नुकसान हो सकता है। साथ ही ये
खतरा केदारनाथ घाटी पर हमेशा के लिए मंडराता रहेगा...
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