Saturday, 9 March 2013

शिव मंदिर

शिवो भूत्वा शिवम यजेत :

"रोद्यती इति रुद्रः ....शं करोति इति शंकरः "
अर्थात जो रुलाते है वह रूद्र और जो कल्याण करते हैं ....शांति देते हैं वो शंकर
शिव आराधना के लिए हमारे देश में जगह जगह शिव मंदिर हैं ....जिसमे शिवार्चन होता रहता है .... शिव मंदिर को अगर ध्यान में लाया जाए तो नन्दी , कूर्म आदि तमाम प्रतीकों के साथ साथ शिव लिंग भी होता है ........
नंदी , कूर्म , नाग , शिवलिंग जैसे प्रतीकों के पीछे सूक्ष्म भाव एवम गूढ़ ज्ञानगम्य सांकेतिक सूत्र हैं ...

नन्दी:
-नन्दी महादेव जी के वाहन हैं
-ब्रम्हचर्य के प्रतीक , सूक्ष्म शरीर के लिए प्रेरक एवम मार्गदर्शक
-शिव के वाहन जैसे नन्दी हैं उसी प्रकार हमारी आत्मा का वाहन शरीर है अतः शिव को आत्मा एवम नन्दी को शरीर का प्रतीक माना जा सकता है....जैसे नन्दी कि दृष्टि शिव मंदिर में सदैव शिव जी कि ओर ही होती है वैसे ही शरीर को भी आत्मभिमुख बनाने का प्रयत्न होना चाहिए ..शरीर का लक्ष्य आत्मा बने यह संकेत इस प्रतीक में है
शिव का अर्थ है कल्याण . अतः शिव रूप बन्ने के लिए सभी के कल्याण का भाव , सभी के मंगल कि कामना को हृदयंगम एवम आत्मसात करना होगा ...इस प्रकार अपनी आत्मा में ऐसे शिवत्व को प्रगट करने की साधना को ही सार्थक शिवपूजा एवम शिव दर्शन कह सकते हैं ...और इसके लिए सर्वप्रथम आत्मा के वाहन अर्थात शरीर को उपयुक्त बनाना पड़ेगा ...जिस के लिए तप एवम ब्रम्हचर्य आवश्यक है

कूर्म:
-मन के लिए प्रेरक एवम मार्गदर्शक
हमारा मन भी कछुए जैसा कवचधारी सुदृढ़ बनना चाहिए ...हमारे मन को शिव कि ओर गतिशील होना चाहिए ...अर्थात मन को सब के कल्याण के लिए चिंतनशील प्रयत्नशील होना चाहिए ..संयमी एवम स्थित्प्रग्य होना चाहिए
-शिव मंदिर में कछुआ शिव की ओर जाता है नन्दी की ओर नहीं ..हमारे मन को भी देहाभिमुख नहीं आत्मा भिमुख होना चाहिए ...भौतिक नहीं आध्यात्मिक होना चाहिए .

शिवालय के द्वार पर प्रहरी गणेश जी एवम हनुमान जी :
गणेश -शिवपुत्र
हनुमान -रूद्रावतार
-जीवन में नन्दी एवम कूर्म कि दिशा व विशेषताएं होते हुए भी जब तक गणेश जी एवम हनुमान जी के दिव्या आदर्श नहीं आ पाते तब तक शिवदर्शन या कल्यानमय आत्मा का साक्षात्कार नहीं हो सकता .

गणेश जी
-बुद्धि एवम विवेक के प्रतीक ( ज्ञान एवम समृद्धि का सदुपयोग होना चाहिए )
-हाथों में अंकुश -संयम का आत्मनियंत्रण का प्रतीक
-हाथों में कमल -पवित्रता का, निर्लेपता का प्रतीक
-पुस्तक -श्रेष्ट , उदार विचारधारा का प्रतीक
-मोदक -मधुर स्वभाव का प्रतीक
-मूसक वाहन -माया पर नियंत्रण का प्रतीक

हनुमान जी
-संयम एवम विश्वहित तत्परता युक्त जीवन
-ब्रम्हचर्य युक्त जीवन
-राम भक्त

शिव मंदिर का शिव द्वार सोपान भूमि से कुछ ऊँचा , दरवाजा संकरा तथा छोटा होना:
क्योकि शिव तत्व को जानने के लिए आत्यंतिक विनम्रता , सावधानी एवम झुके हुए सिर का होना अति आवश्यक है .
( यहाँ पर ज्ञात हो कि उपरोक्त अवस्थाओं से गुजरने पर भी अहंकार लेश मात्र भी सही रह सकता है ...जो कि आत्मदर्शन / शिवदर्शन के मार्ग का अवरोध है )

शिवलिंग/ आत्म लिंग / ब्रम्ह लिंग :
-यह विश्व कल्याण निमग्न ब्रम्ह / परमात्मा का प्रतीक है
-ऐसा ब्रम्ह ही कालरूप सर्प को गले लगा सकता है (हिमालय सा शुभ्र , शांत , प्रचंड तपस्वी , एवम स्मशान वैराग्य से युक्त शिवरूप आत्मा ही भयंकर शत्रुओं के बीच निर्द्वंद -निर्भय रह सकता है ....अर्थात कालरूप सर्प को भी गले लगा सकता है.....मृत्यु को भी मित्र बना सकता है....कालातीत महाकाल कहला सकता है )

भगवान शिव द्वारा धारण किये जाने वाले कपाल , कमंडल , आदि पदार्थ संतोषी , तपस्वी, अपरिग्रही , साधनामय जीवन के प्रतीक हैं ..
डमरू निनाद आत्मानंद , निजानंद के प्रतीक हैं
त्रिदल विल्वपत्र , तीन नेत्र , त्रिपुंड , त्रिशूल आदि सत् राज तमो गुणों को संयम करने का संकेत देते हैं त्रिकाल , त्रिलोक एवम त्रिकाय से परे होने का संकेत देते हैं
तृतीय नेत्र -विवेक बुद्धि , भविष्य दर्शन , अतीन्द्रीय शक्ति , काम दहन आदि क्षमताओं का केन्द्र

शिवलिंग यदि शिव मय आत्मा है तो उसके साथ छाया की तरह उपस्थित माँ पार्वती उस आत्मा की शक्ति हैं

शिवलिंग पर अविरत टपकने वाली जलधारा....ज्ञान गंगा है
यदि शिव आराधक इन भावनाओं के अनुरूप अपने अपने व्यक्तित्व को गढ़ने के लिए व्रतशील हो जाएँ तो शिव पर अविरत टपकने वाली जलधारा की तरह युगाधिपति महादेव की दैवी कृपा रुपी अमृत धारा सहज ही साधक पर अविरत बरसती रहेगी .

शिव जी नग्न रहते हैं ....क्योकि शिव जी घर के देवता हैं ...हर घर के लिए अनुकरणीय हैं ( तथाकथित शिष्टाचारों कि ओर ध्यान ना देने वाले तथा ह्रदय के सच्चे भाओं को पहचानने वाले

उपरोक्त भावों के साथ अगर हम शिव मंदिर में एवम मन मंदिर में शिव अर्चन करें ऐसा महापुरुषों /ऋषियों की इच्छा थी .